20-12-92  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

आज्ञाकारी ही सर्व शक्तियों के अधिकारी

सर्वशक्तिवान बापदादा अपने मास्टर सर्वशक्तिवान बच्चों प्रति बोले -

आज सर्व शक्तियों के दाता बापदादा अपने शक्ति सेना को देख रहे हैं। सर्वशक्तिवान बाप ने सभी ब्राह्मण आत्माओं को समान सर्व शक्तियों का वर्सा दिया है। किसको कम शक्ति वा किसको ज्यादा-यह अन्तर नहीं किया। सभी को एक द्वारा, एक साथ, एक समान शक्तियाँ दी हैं। तो रिजल्ट देख रहे थे कि एक समान मिलते हुए भी अन्तर क्यों है? कोई सर्व शक्ति सम्पन्न बने और कोई सिर्फ शक्ति सम्पन्न बने हैं, सर्व नहीं। कोई सदा शक्तिस्वरूप बने, कोई कभी-कभी शक्तिस्वरूप बने हैं। कोई ब्राह्मण आत्माए अपनी सर्व-शक्तिवान की अथॉरिटी से जिस समय, जिस शक्ति को ऑर्डर करती हैं वह शक्ति रचना के रूप में मास्टर रचता के सामने आती है। ऑर्डर किया और हाज़र हो जाती है। कोई ऑर्डर करते हैं लेकिन समय पर शक्तियाँ हाज़र नहीं होतीं, ‘जी-हाज़र’ नहीं होती। इसका कारण क्या? कारण है-जो बच्चे सर्वशक्तिवान बाप, जिसको हज़ूर भी कहते हैं, हाज़र-नाज़र भी कहते हैं-तो जो बच्चे हज़ूर अर्थात् बाप के हर कदम की श्रीमत पर, हर समय ‘जी-हाज़र’ वा हर आज्ञा में ‘जी-हाज़र’ प्रैक्टिकल में करते हैं, तो ‘जी-हाज़र’ करने वाले के आगे हर शक्ति भी ‘जी-हाज़र’ वा ‘जी मास्टर हज़ूर’ करती है।

अगर कोई आत्मायें श्रीमत वा आज्ञा जो सहज पालन कर सकते हैं वह करते हैं और जो मुश्किल लगती है वह नहीं कर सकते-कुछ किया, कुछ नहीं किया, कभी ‘जी-हाज़र’, कभी ‘हाज़र’-इसका प्रत्यक्ष सबूत वा प्रत्यक्ष प्रमाण रूप है कि ऐसी आत्माओं के आगे सर्व शक्तियाँ भी समय प्रमाण हाज़र नहीं होती हैं। जैसे-कोई परिस्थिति प्रमाण समाने की शक्ति चाहिए तो संकल्प करेंगे कि हम अवश्य समाने की शक्ति द्वारा इस परिस्थिति को पार करेंगे, विजयी बनेंगे। लेकिन होता क्या है? सेकेण्ड नम्बर वाले अर्थात् कभी-कभी वाले समाने की शक्ति का प्रयोग करेंगे-10 बार समायेंगे लेकिन समाते हुए भी एक-दो बार समाने चाहते भी समा नहीं सकेंगे। फिर क्या सोचते हैं? मैंने किसको नहीं सुनाया, मैंने समाया लेकिन यह साथ वाले थे, हमारे सहयोगी थे, समीप थे-इसको सिर्फ इशारा दिया। सुनाया नहीं, इशारा दिया। कोई शब्द बोलने नहीं चाहते थे, सिर्फ एक-आधा शब्द निकल गया। तो इसको क्या कहा जायेगा? समाना कहेंगे? 10 के आगे तो समाया और एक-दो के आगे समा नहीं सकते, तो इसको क्या कहेंगे? समाने की शक्ति ने ऑर्डर माना? जबकि अपनी शक्ति है, बाप ने वर्से में दिया है, तो बाप का वर्सा सो बच्चों का वर्सा हो जाता। अपनी शक्ति अपने काम में न आये तो इसको क्या कहा जायेगा? ऑर्डर मानने वाले या ऑर्डर न मानने वाले कहा जायेगा?

आज बापदादा सर्व ब्राह्मण आत्माओं को देख रहे थे कि कहाँ तक सर्व शक्तियों के अधिकारी बने हैं। अगर अधिकारी नहीं बने, तो उस समय परिस्थिति के अधीन बनना पड़े। बापदादा को सबसे ज्यादा रहम उस समय आता है जब बच्चे कोई भी शक्ति को समय पर कार्य में नहीं लगा सकते हैं। उस समय क्या करते हैं? जब कोई बात सामना करती तो बाप के सामने किस रूप में आते हैं? ज्ञानी-भक्त के रूप में आते हैं। भक्त क्या करते हैं? भक्त सिर्फ पुकार करते रहते कि यह दे दो। भागते बाप के पास हैं, अधिकार बाप पर रखते हैं लेकिन रूप होता है रॉयल भक्त का। और जहाँ अधिकारी के बजाए ज्ञानी-भक्त अथवा रॉयल भक्त के रूप में आते हैं, तो जब तक भक्ति का अंश है, तो भक्ति का फल सद्गति अर्थात् सफलता, सद्गति अर्थात् विजय नहीं प्राप्त कर सकते। क्योंकि जहाँ भक्ति का अंश रह जाता वहाँ भक्ति का फल ज्ञान अर्थात् सर्व प्राप्ति नहीं हो सकती, सफलता नहीं मिल सकती। भक्ति अर्थात् मेहनत और ज्ञान अर्थात् मुहब्बत। अगर भक्ति का अंश है तो मेहनत जरूर करनी पड़ती और भक्ति की रस्म-रिवाज है कि जब भीड़ पड़ेगी तब भगवान याद आयेगा, नहीं तो अलबेले रहेंगे। ज्ञानी-भक्त भी क्या करते हैं? जब कोई विघ्न आयेगा तो विशेष याद करेंगे।

एक है-सेवा प्रति याद में बैठना और दूसरा है-स्व की कमजोरी को भरने लिए याद में बैठना। दोनों में अन्तर है। जैसे-अभी भी विश्व पर अशान्ति का वायुमण्डल है तो सेवा प्रति संगठित रूप में विशेष याद के प्रोग्राम बनाते हो, वह अलग बात है। वह तो दाता बन देने के लिए करते हो। वह मांगने के लिए नहीं करते हो, औरों को देने के लिए करते हो। तो वह हुआ सेवा प्रति। लेकिन अपनी कमजोरी भरने के प्रति समय पर विशेष याद करते हो और वैसे अलबेलेपन की याद होती है। याद होती है, भूलते नहीं हो लेकिन अलबेलेपन की याद आती है-हम तो हैं ही बाबा के, और है ही कौन। लेकिन यथार्थ शक्तिशाली याद का प्रत्यक्ष-प्रमाण समय प्रमाण शक्ति हाज़र हो जाए। कितना भी कोई कहे-मैं तो याद में रहती ही हूँ वा रहता ही हूँ, लेकिन याद का स्वरूप है सफ-लता। ऐसे नहीं-जिस समय याद में बैठते उस समय खुशी भी अनुभव होती, शक्ति भी अनुभव होती और जब कर्म में, सम्बन्ध-सम्पर्क में आते उस समय सदा सफलता नहीं होती। तो उसको कर्मयोगी नहीं कहा जायेगा। शक्तियाँ शस्त्र हैं और शस्त्र किस समय के लिए होता है? शस्त्र सदा समय पर काम में लाया जाता है।

यथार्थ याद अर्थात् सर्व शक्ति सम्पन्न। सदा शक्तिशाली शस्त्र हो। परिस्थिति रूपी दुश्मन आया और शस्त्र काम में नहीं आये, तो इसको क्या कहा जायेगा? शक्तिशाली या शस्त्र धारी कहेंगे? हर कर्म में याद अर्थात् सफलता हो। इसको कहा जाता है कर्मयोगी। सिर्फ बैठने के टाइम के योगी नहीं हो। आपके योग का नाम बैठा-बैठा योगी है या कर्मयोगी नाम है? कर्मयोगी हो ना। निरन्तर कर्म है और निरन्तर कर्मयोगी हो। जैसे कर्म के बिना एक सेकेण्ड भी रह नहीं सकते, चाहे सोये हुए हो-तो वह भी सोने का कर्म कर रहे हो ना। तो जैसे कर्म के बिना रह नहीं सकते वैसे हर कर्म योग के बिना कर नहीं सकते। इसको कहा जाता है कर्मयोगी। ऐसे नहीं समझो कि बात ही ऐसी थी ना, सरकमस्टांश ही ऐसे थे, समस्या ही ऐसी थी, वायुमण्डल ऐसा था। यही तो दुश्मन है और उस समय कहो-दुश्मन आ गया, इसलिए तलवार चला न सके, तलवार काम में लगा नहीं सके, या तलवार याद ही नहीं आये, या तलवार ने काम नहीं किया-तो ऐसे को क्या कहा जायेगा? शस्त्र धारी? शक्ति-सेना हो। तो सेना की शक्ति क्या होती है? शस्त्र । और शस्त्र हैं सर्व शक्तियाँ। तो रिजल्ट क्या देखा? मैजारिटी सदा समय पर सर्व शक्तियों को ऑर्डर पर चला सकें-इसमें कमी दिखाई दी। समझते भी हैं लेकिन सफलता-स्वरूप में समय प्रमाण या तो शक्तिहीन बन जाते हैं या थोड़ा-सा असफलता का अनुभव कर फौरन सफलता की ओर चल पड़ते हैं। तीन प्रकार के देखे।

एक-उसी समय दिमाग द्वारा समझते हैं कि यह ठीक नहीं है, नहीं करना चाहिए लेकिन उस समझ को शक्तिस्वरूप में बदल नहीं सकते।

दूसरे हैं-जो समझते भी हैं लेकिन समझते हुए भी समय वा समस्या पूरी होने के बाद सोचते हैं। वह थोड़े समय में सोचते हैं, वह पूरा होने के बाद सोचते।

तीसरे-महसूस ही नहीं करते कि यह रांग है, सदा अपने रांग को राइट ही सिद्ध करते हैं। अर्थात् सत्यता की महसूसता-शक्ति नहीं। तो अपने को चेक करो कि मैं कौन हूँ?

बापदादा ने देखा कि वर्तमान समय के प्रमाण सदा और सहज सफलता किन बच्चों ने प्राप्त की है। उसमें भी अन्तर है। एक हैं सहज सफलता प्राप्त करने वाले और दूसरे हैं मेहनत और सहज-दोनों के बाद सफलता पाने वाले। जो सहज और सदा सफलता प्राप्त करते हैं उनका मूल आधार क्या देखा? जो आत्मायें सदा स्वयं को निर्माणचित की विशेषता से चलाते रहते हैं, वही सहज सफलता को प्राप्त होते आये हैं। ‘निर्माण’ शब्द एक है लेकिन निर्माण-स्थिति का विस्तार और निर्माण-स्थिति के समय प्रमाण प्रकार........ वह बहुत हैं। उस पर फिर कोई समय सुनायेंगे। लेकिन यह याद रखना कि निर्मान बनना ही स्वमान है और सर्व द्वारा मान प्राप्त करने का सहज साधन है। निर्मान बनना झुकना नहीं है लेकिन सर्व को अपनी विशेषता और प्यार में झुकाना है। समझा?

सभी ने रिजल्ट सुनी। समय आपका इन्तज़ार कर रहा है और आप क्या कर रहे हो? आप समय का इन्तजार कर रहे हो? मालिक के बालक हो ना। तो समय आपका इन्तज़ार कर रहा है कि ये मेरे मालिक मुझ समय को परिवर्तन करेंगे। वह इन्तजार कर रहा है और आपको इन्तजाम करना है, इन्तजार नहीं करना है। सर्व को सन्देश देने का और समय को सम्पन्न बनाने का इन्तजाम करना है। जब दोनों कार्य सम्पन्न हों तब समय का इन्तजार पूरा हो। तो ऐसा इन्तजाम सब कर रहे हो? किस गति से? समय को देख आप भी कहते हो कि बहुत फास्ट समय बीत रहा है। इतने वर्ष कैसे पूरे हो गये-सोचते हो ना! अव्यक्त बाप की पालना को भी 25 वर्ष होने को हो गये। कितना फास्ट समय चला! तो आपकी गति क्या है? फास्ट है? या फास्ट चलकर कभी-कभी थक जाते हो, फिर रेस्ट करते हो? कर रहे हैं-यह तो ड्रामा के बंधन में बंधे हुए ही हो। लेकिन गति क्या है, इसको चेक करो। सेवा हो रही है, पुरूषार्थ हो रहा है, आगे बढ़ रहे हैं-यह तो ठीक है। तो अब गति को चेक करो, सिर्फ चलने को चेक नहीं करो। गति को चेक करो, स्पीड को चेक करो। समझा? सभी अपना काम कर रहे हो ना। अच्छा!

चारों ओर के सदा बाप के आगे ‘जी-हाज़र’ करने वाले, सदा मास्टर सर्वशक्तिवान बन सर्व शक्तियों को स्वयं के आर्डर में चलाने वाले, सर्व शक्तियाँ ‘जी-हाज़र’ का पार्ट बजाने वाली-ऐसे सदा सफलतामूर्त आत्मायें, सदा हर कर्म में याद का स्वरूप अनुभव करने वाले और कराने वाले-ऐसे अनुभवी आत्माओं को सदा हर कर्म में, सम्बन्ध में, सम्पर्क में निर्माण बन विजयी-रत्न बनने वाले, ऐसे सहज सफलतामूर्त श्रेष्ठ बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात

ग्रुप नं. 1

साधारण कर्म में भी ऊंची स्थिति की झलक दिखाना ही फॉलो फादर करना है

सदा संगमयुगी पुरूषोत्तम आत्मा हैं-ऐसे अनुभव करते हो? संगमयुग का नाम ही है पुरूषोत्तम। अर्थात् पुरूषों से उत्तम पुरूष बनाने वाला युग। तो संगमयुगी हो? आप सभी पुरूषोत्तम बने हो ना। आत्मा पुरूष है और शरीर प्रकृति है। तो पुरूषोत्तम अर्थात् उत्तम आत्मा हूँ। सबसे नम्बरवन पुरूषोत्तम कौन है? (ब्रह्मा बाबा) इसीलिए ब्रह्मा को आदि देव कहा जाता है। ‘फरिश्ता ब्रह्मा’ भी उत्तम हो गया और फिर भविष्य में देव आत्मा बनने के कारण पुरूषोत्तम बन जाते। लक्ष्मी-नारायण को भी पुरूषोत्तम कहेंगे ना। तो पुरूषोत्तम युग है, पुरूषोत्तम मैं आत्मा हूँ। पुरूषोत्तम आत्माओं का कर्तव्य भी सर्वश्रेष्ठ है। उठा, खाया-पीया, काम किया-यह साधारण कर्म नहीं, साधारण कर्म करते भी श्रेष्ठ स्मृति, श्रेष्ठ स्थिति हो। जो देखते ही महसूस करे कि यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं। जैसे-जो असली हीरा होगा वह कितना भी धूल में छिपा हुआ हो लेकिन अपनी चमक जरूर दिखायेगा, छिप नहीं सकता। तो आपकी जीवन हीरे तुल्य है ना।

कैसे भी वातावरण में हों, कैसे भी संगठन में हों लेकिन जैसे हीरा अपनी चमक छिपा नहीं सकता, ऐसे पुरूषोत्तम आत्माओं की श्रेष्ठ झलक सबको अनुभव होनी चाहिए। तो ऐसे है या दफ्तर में जाकर, काम में जाकर आप भी वैसे ही साधारण हो जाते हो? अभी गुप्त में हो, काम भी साधारण है। इसीलिए पाण्डवों को गुप्त रूप में दिखाया है। गुप्त रूप में राजाई नहीं की, सेवा की। तो दूसरों के राज्य में गवर्मेन्ट-सर्वेन्ट कहलाते हो ना। चाहे कितना भी बड़ा आफीसर हो लेकिन सर्वेन्ट ही है ना। तो गुप्त रूप में आप सब सेवा-धारी हो लेकिन सेवाधारी होते भी पुरूषोत्तम हो। तो वह झलक और फलक दिखाई दे।

जैसे ब्रह्मा बाप साधारण तन में होते भी पुरूषोत्तम अनुभव होता था। सभी ने सुना है ना। देखा है या सुना है? अभी भी अव्यक्त रूप में भी देखते हो-साधारण में पुरूषोत्तम की झलक है! तो फॉलो फादर है ना। ऐसे नहीं-साधारण काम कर रहे हैं। मातायें खाना बना रही हैं, कपड़े धुलाई कर रही हैं-काम साधारण हो लेकिन स्थिति साधारण नहीं, स्थिति महान हो। ऐसे है? या साधारण काम करते साधारण बन जाते हैं? जैसे दूसरे, वैसे हम-नहीं। चेहरे पर वो श्रेष्ठ जीवन का प्रभाव होना चाहिए। यह चेहरा ही दर्पण है ना। इसी से ही आपकी स्थिति को देख सकते हैं। महान हैं या साधारण हैं-यह इसी चेहरे के दर्पण से देख सकते हैं। स्वयं भी देख सकते हो और दूसरे भी देख सकते हैं। तो ऐसे अनुभव करते हो? सदैव स्मृति और स्थिति श्रेष्ठ हो। स्थिति श्रेष्ठ है तो झलक आटोमेटिकली श्रेष्ठ होगी।

जो समान स्थिति वाले हैं वे सदा बाप के साथ रहते हैं। शरीर से चाहे किसी कोने में बैठे हों, किनारे बैठे हों, पीछे बैठे हों लेकिन मन की स्थिति में साथ रहते हो ना। साथ वही रहेंगे जो समान होंगे। स्थूल में चाहे सामने भी बैठे हों लेकिन समान नहीं तो सदा साथ नहीं रहते, किनारे में रहते हैं। तो समीप रहना अर्थात् समान स्थिति बनाना। इसलिए सदा ब्रह्मा बाप समान पुरूषोत्तम स्थिति में स्थित रहो। कई बच्चों की चलन और चेहरा लौकिक रीति में भी बाप समान होता है तो कहते हैं-यह तो जैसे बाप जैसा है। तो यहाँ चेहरे की बात तो नहीं लेकिन चलन ही चित्र है। तो हर चलन से बाप का अनुभव हो-इसको कहते हैं बाप समान। तो समीप रहना चाहते हो या दूर? इस एक जन्म में संगम पर स्थिति में जो समीप रहता है, वह परमधाम में भी समीप है और राजधानी में भी समीप है। एक जन्म की समीपता अनेक जन्म समीप बना देगी।

हर कर्म को चेक करो। बाप समान है तो करो, नहीं तो चेंज कर दो। पहले चेक करो, फिर करो। ऐसे नहीं-करने के बाद चेक करो कि यह ठीक नहीं था। ज्ञानी का लक्षण है-पहले सोचे, फिर करे। अज्ञानी का लक्षण है-करके फिर सोचते। तो आप ‘‘ज्ञानी तू आत्मा’’ हो ना। या कभी-कभी भक्त बन जाते हो? पंजाब वाले तो बहादुर हैं ना। मन से भी बहादुर। छोटी-सी माया चींटी के रूप में आये और घबरा जायें-नहीं। चैलेन्ज करने वाले। स्टूडेन्ट कभी पेपर से घबराते हैं? तो आप बहादुर हो या छोटे से पेपर में भी घबराने वाले हो? जो योग्य स्टूडेन्ट होते हैं वो आह्वान करते हैं कि जल्दी से पेपर हो और क्लास आगे बढ़े। जो कमजोर होते हैं वो सोचते हैं-डेट आगे बढ़े। आप तो होशियार हो ना।

यह निश्चय पक्का हो कि हम ही कल्प-कल्प के विजयी हैं और हम ही बार-बार बनेंगे। इतना पुरूषार्थ किया है? आप नहीं बनेंगे तो कौन बनेंगे? आप ही विजयी बने थे, विजयी बने हैं और विजयी रहेंगे। ‘विजयी’ शब्द बोलने से ही कितनी खुशी होती है! चेहरा बदल जाता है ना। जो सदा विजयी रहते वो कितना खुश रहते हैं! इसीलिए जब भी कोई किसी भी क्षेत्र में विजय प्राप्त करता है तो खुशी के बाजे बजते हैं। आपके तो सदा ही बाजे बजते हैं। कभी भी खुशी के बाजे बन्द न हों। आधा कल्प के लिए रोना बन्द हो गया। जहाँ खुशी के बाजे बजते हैं वहाँ रोना नहीं होता। अच्छा!

ग्रुप नं. 2

यथार्थ निर्णय का आधार-निश्चयबुद्धि और निश्चिंत स्थिति

सदा अपने को विजयी रत्न अनुभव करते हो? सदा विजयी बनने का सहज साधन क्या है? सदा विजयी बनने का सहज साधन है-एक बल एक भरोसा। एक में भरोसा और उसी एक भरोसे से एक बल मिलता है। निश्चय सदा ही निश्चिंत बनाता है। अगर कोई समझते हैं कि मुझे निश्चय है, तो उसकी निशानी है कि वो सदा निश्चिंत होगा और निश्चिंत स्थिति से जो भी कार्य करेगा उसमें जरूर सफल होगा। जब निश्चिंत होते हैं तो बुद्धि जजमेन्ट यथार्थ करती है। अगर कोई चिंता होगी, फिक्र होगा, हलचल होगी तो कभी जजमेन्ट ठीक नहीं होगी। तराजू देखा है ना। तराजू की यथार्थ तौल तब होती है जब तराजू में हलचल नहीं हो। अगर हलचल होगी तो यथार्थ नहीं कहा जायेगा। ऐसे ही, बुद्धि में अगर हलचल है, फिक्र है, चिन्ता है तो हलचल जरूर होगी।

इसीलिए यथार्थ निर्णय का आधार है-निश्चयबुद्धि, निश्चिंत। सोचने की भी आवश्यकता नहीं। क्योंकि फॉलो फादर है ना। यह करूँ, वह करूँ........-ये तब सोचे जब अपना कुछ करना हो। फॉलो करना है ना। तो फॉलो करने के लिए सोचने की आवश्यकता नहीं। कदम पर कदम रखना। कदम है श्रीमत। जो श्रीमत मिली है उसी प्रमाण चलना अर्थात् कदम पर कदम रखना। तो सोचने की आवश्यकता है क्या? नहीं है ना। निश्चिंत हैं तो सदा ही निर्णय यथार्थ देंगे। जब निर्णय यथार्थ होगा तो विजयी होंगे। निर्णय ठीक नहीं होता तो जरूर हलचल है। जब भी कोई हलचल हो तो सोचो कि ब्रह्मा बाप ने क्या किया? क्योंकि ब्रह्मा बाप कर्म का सैम्पल है। ब्रह्मा बाप ने हर कदम श्रीमत पर उठाये। तो फॉलो फादर। सिर्फ फॉलो ही करना है, कोई नया रास्ता नहीं निकालना है, सोचना नहीं है। जब मनमत मिक्स करते हो तब मुश्किल होता है। एक-मुश्किल होगा, दूसरा-असफल। मेहनत तो की है ना। गांव में खेती का काम करते हैं तो मेहनत करते हैं। यहाँ तो मेहनत नहीं करनी है। सहज पसन्द है या मेहनत? मेहनत करके, अनुभव करके देख लिया।

अब बाप कहते हैं-मेहनत छोड़ मोहब्बत में रहो, लवलीन रहो। जो लव में लीन होता है उसको मेहनत नहीं करनी पड़ती है। ब्राह्मण माना मौज, ब्राह्मण माना मेहनत नहीं। बाप ने कहा और बच्चों ने किया-इसमें मेहनत की क्या बात है! बच्चों का काम है करना, सोचना नहीं। सहज योगी हो ना। सदा विजयी रत्न हो ना। यह रूहानी निश्चय चाहिए कि हम नहीं बनेंगे तो कौन बनेंगे! इतना अटल निश्चय हो। जब फॉलो फादर कर रहे हो तो कौन बनेंगे। वही बनेंगे ना। निश्चय तो निश्चय ही हुआ ना। अगर निश्चय में 10%, 20% कम हुआ तो निश्चय नहीं कहेंगे।

जो सदा विजयी है उसी को ही बेफिक्र बादशाह कहा जाता है। जो अभी बादशाह बनता है वो ही भविष्य में बादशाह बनेंगे। अभी बेफिक्र बादशाह नहीं तो भविष्य में भी नहीं। तो राजा बनने वाले हो या औरों को राज्य करते हुए देखेंगे? स्वराज्य है तो विश्व-राज्य है। ऐसे अधिकारी हो? अधीन तो नहीं होते-क्या करें, संस्कार पक्का है? ऐसे तो नहीं-चाहते नहीं लेकिन हो जाता है? इसको कहेंगे अधीन। तो कभी अधीन तो नहीं हो जाते? क्रोध करना तो नहीं चाहते लेकिन आ जाता है। चाहते नहीं हैं लेकिन मज-बूर हो जाते हैं। नहीं। अधिकारी बन गये तो अधीनता समाप्त हुई। जैसे चाहें, जो चाहें वह कर सकते हैं। अधिकारी के संकल्प में यह कभी नहीं आयेगा कि-’’चाहते नहीं हैं, हो जाता है, पुरूषार्थ कर रहे हैं, हो जायेगा।’’ इससे सिद्ध है कि अधीन हैं। जो अधीन होगा वह अधिकारी नहीं। जो अधिकारी होगा वो अधीन नहीं। या रात होगी या दिन होगा। दोनों इकट्ठे नहीं। ‘अधिकार’ और ‘अधीनता’-दोनों इकट्ठे नहीं चल सकते। मातायें अधिकारी बन गई? लोगों ने कहाँ फेंक दिया और बाप ने कहाँ रख दिया! लोगों ने पांव की जुत्ती बना दिया और बाप ने सिर का ताज बनाया। खुशी है ना। कहाँ जूती, कहाँ ताज-कितना फर्क है! अभी तो शक्तिस्वरूप बन गये। पाण्डव भी शक्तिरूप में देखते हैं ना। शिव शक्ति भी विजयी हैं तो पाण्डव भी विजयी हैं। अविनाशी निश्चय, अविनाशी नशा है तो सदा ही विजय निश्चित है। अच्छा!

ग्रुप नं. 3

सदा तन्दरूस्त रहने के लिये रोज खुशी की खुराक खाइये

सभी अपने को खुशनसीब आत्मायें अनुभव करते हो? जो खुशनसीब आत्मायें हैं उनके मन में सदा खुशी के गीत बजते हैं। ‘‘वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य!’’-यह गीत बजता है ना। यह खुशी का गीत गाना तो सभी को आता है ना। चाहे बूढ़ा हो, चाहे बच्चा हो, चाहे जवान हो-सभी गाते हैं। और मन में है ही क्या जो चले। यही खुशी के गीत बजेंगे ना। और सब बातें खत्म हो गई। बस, बाप और मैं, तीसरा न कोई। जब ऐसी स्थिति बन जाती है तब खुशी के गीत बजते हैं-’’वाह बाबा वाह, वाह मेरा भाग्य वाह!’’ वैसे भी गाया हुआ है-’खुशी’ सबसे बड़ी खुराक है, खुशी जैसी और कोई खुराक नहीं। जो खुशी की खुराक खाने वाले हैं वो सदा तंदुरुस्त रहेंगे, हेल्दी रहेंगे, कभी कमजोर नहीं होंगे। जो अच्छी खुराक खाते हैं वो शरीर से कमजोर नहीं होते हैं। खुशी है मन की खुराक। मन कभी कमजोर नहीं होगा, सदा शक्तिशाली। मन और बुद्धि सदा शक्तिशाली हैं तो स्थिति शक्तिशाली होगी। ऐसी शक्तिशाली स्थिति वाले सदा ही अचल-अडोल रहेंगे। तो खुशी की खुराक खाते हो? या कभी खाते हो, कभी भूल जाते हो? ऐसे होता है ना। शरीर के लिए भी ताकत की चीजें देते हैं तो कभी खाते हैं, कभी भूल जाते हैं। यह खुराक किस समय खाते हो? कभी खाओ, कभी न खाओ-ऐसे तो नहीं है।

सबसे बड़ी खुशी की बात है-बाप ने अपना बना लिया! दुनिया वाले तड़पते हैं कि भगवान की एक सेकेण्ड भी नज़र पड़ जाये और आप सदा नयनों में समाये हुए हो! वो तो एक घड़ी की नज़र कहते हैं और आप रहते ही बाप की नज़रों में हो। इसीलिए टाइटल है-नूरे रत्न आंखों के नूर। तो वे तड़पते हैं और आप समा गये। इसको कहा जाता है खुशनसीब। सोचा नहीं था लेकिन बन गये। अपना नसीब देखकर के नशे में रहते हो ना। वाह-वाह! अभी ‘हाय-हाय’ तो नहीं करते ना। कभी ‘हाय-हाय’ करते हो? थोड़ा भी दु:ख की लहर अनुभव हुई अर्थात् ‘हाय-हाय’ हुई। ‘‘हाय! यह होना नहीं चाहिए, ऐसे हो गया........’’-कभी दु:ख की लहर आती है? सुखदाता के बच्चे को दु:ख कहाँ से आया? सागर के बच्चे हो और पानी सूख जाए तो उसे क्या कहेंगे? दु:ख की लहर समाप्त हुई? कभी तन का, कभी धन का, कभी बीमारी का दु:ख होता है? कभी पोत्रे-धोत्रे बीमार हो जाए, कभी खेती में नुकसान हो जाए-तो दु:ख होगा?

सदा यह स्मृति में रहे कि हम सुखदाता के बच्चे मास्टर सुखदाता हैं। जो दाता है, उसके पास है तभी तो देगा ना। तो इतना है जो मास्टर दाता बनो? जिसके पास अपने खाने के लिए ही नहीं हो वह दाता कैसे बनेगा। इसलिए जैसा बाप वैसे बच्चे। बाप को सागर कहते हैं। सागर अर्थात् बेहद, खुटता नहीं। कितना भी सागर को सुखाते हैं, खुटता नहीं। तो आप भी मास्टर सागर हो, नदी-नाले नहीं। भाग्यविधाता बाप बन गया। तो बाप के पास जो है वह बच्चों का है। भाग्य आपका वर्सा है। वर्सा सम्भालने आता है? या गँवाने वाले हो? कई बच्चों को सम्भालना नहीं आता तो खत्म कर देते हैं और कइयों को सम्भालना अच्छा आता है तो बढ़ा देते हैं। आप कौन हो? बढ़ाने वाले। ऐसा भाग्य सारे कल्प में अभी मिलता है। तो ऐसी अमूल्य चीज़ बढ़ानी है, न कि गँवानी है। बढ़ाने का साधन है-बाँटना।

जितना औरों को भाग्यवान बनायेंगे अर्थात् भाग्य बांटेंगे उतना भाग्य बढ़ता जायेगा। गायन है ना-जब ब्रह्मा ने भाग्य बांटा तो सोये हुए थे क्या? तो ब्रह्मा ने भाग्य बांटा और ब्रह्माकुमार-कुमारी क्या करते? भाग्य बांटते हो ना। जितना बांटेंगे उतना बढ़ेगा। दूसरा धन खर्च करने से कम होता है और यह भाग्य जितना खर्चेंगे उतना बढ़ेगा। पाण्डव तो कमाने में होशियार होते हैं। क्योंकि जानते हो कि एक जन्म जमा का है और अनेक जन्म खाने के हैं। सतयुग में कमाई करेंगे क्या? आराम से खाते रहेंगे। एक जन्म का पुरूषार्थ और अनेक जन्म की प्रालब्ध। तो जन्म-जन्म के लिए इसी एक जन्म में इकठ्ठा करना है। अच्छा! सभी सन्तुष्ट हो ना। ब्राह्मण जीवन में अगर सन्तुष्ट नहीं रहे तो कब रहेंगे। अभी ही सन्तुष्टता का मजा है। ब्राह्मण जीवन का लक्षण ही है सन्तुष्ट रहना। सन्तुष्ट हैं तो खुश हैं, अगर सन्तुष्ट नहीं तो खुश नहीं। अच्छा!

ग्रुप नं. 4

ड्रामा के ज्ञान की स्मृति हर विघ्न को ‘नथिंग-न्यु’ कर देगी

अपने को सदा विघ्न-विनाशक आत्मा अनुभव करते हो? या विघ्न आये तो घबराने वाले हो? विघ्न-विनाशक आत्मा सदा ही सर्व शक्तियों से सम्पन्न होती है। विघ्नों के वश होने वाले नहीं, विघ्न-विनाशक। कभी विघ्नों का थोड़ा प्रभाव पड़ता है? कभी भी किसी भी प्रकार का विघ्न आता है तो स्मृति रखो कि-विघ्न का काम है आना और हमारा काम है विघ्न-विनाशक बनना। जब नाम है विघ्न-विनाशक, तो जब विघ्न आयेगा तब तो विनाश करेंगे ना। तो ऐसे कभी नहीं सोचना कि हमारे पास यह विघ्न क्यों आता है? विघ्न आना ही है और हमें विजयी बनना है। तो विघ्न-विनाशक आत्मा कभी विघ्न से न घबराती है, न हार खाती है। ऐसी हिम्मत है? क्योंकि जितनी हिम्मत रखते हैं, एक गुणा बच्चों की हिम्मत और हजार गुणा बाप की मदद। तो जब इतनी बाप की मदद है तो विघ्न क्या मुश्किल होगा? इसलिए कितना भी बड़ा विघ्न हो लेकिन अनुभव क्या होता है? विघ्न नहीं है लेकिन खेल है। तो खेल में कभी घबराया जाता है क्या? खेल करने में खुशी होती है ना! ऐसे खेल समझने से घबरायेंगे नहीं लेकिन खुशी-खुशी से विजयी बनेंगे। सदा ड्रामा के ज्ञान की स्मृति से हर विघ्न को ‘नथिंग न्यु’ समझेगा। नई बात नहीं, बहुत पुरानी है।

कितने बार विजयी बने हो? (अनेक बार) याद है या ऐसे ही कहते हो? सुना है कि ड्रामा रिपीट होता है, इसीलिए कहते हो या समझते हो अनेक बार किया है? अगर ड्रामा की प्वाइन्ट बुद्धि में क्लीयर है कि हू-ब-हू रिपीट होता है, तो उस निश्चय के प्रमाण हू-ब-हू जब रिपीट होता है, तो अनेक बार रिपीट हुआ है और अब रिपीट कर रहे हैं। लेकिन निश्चय की बात है। अगले कल्प में और कोई विजयी बने और इस कल्प में आप विजयी बनो-यह हो नहीं सकता। क्योंकि जब बना-बनाया ड्रामा कहते हैं, तो बना हुआ है और बना रहे हैं अर्थात् रिपीट कर रहे हैं। ऐसा निश्चयबुद्धि अचल-अडोल रहता है।

अचलघर किसका यादगार है? ज्ञान के राज़ों में जो अचल रहता है उसका यादगार अचलघर है। तो यह नशा रहता है ना कि हम प्रैक्टिकल में अपना यादगार देख रहे हैं। जो सदा विघ्न-विनाशक स्थिति में स्थित रहता है वह सदा ही डबल लाइट रहता है। कोई बोझ है? सब-कुछ तेरा कर लिया है? कि आधा तेरा, आधा मेरा? 75%  बाप का, 25%  मेरा? कभी तेरा कह दो, और जब मतलब हो तो मेरा कह दो? मेरा-मेरा कहते तो अनुभव कर लिया, क्या मिला? तेरा कहने से भरपूर हो जायेंगे। मेरा-मेरा कहेंगे तो खाली हो जायेंगे। सदा डबल लाइट अर्थात् सब-कुछ तेरा। जरा भी अगर मोह है तो मेरा है। तेरा अर्थात् निर्मोही।

ग्रुप नं. 5

सब-कुछ समर्पित कर एवररेडी बनो

सभी अपने को हर कदम में पद्मों की कमाई जमा करने वाले समझते हो? कितना जमा किया है? अरब, खरब-कितना जमा किया है? हिसाब कर सकते हो? आजकल का कम्प्यूटर हिसाब कर सकता है? तो सारे कल्प में और सारे वर्ल्ड में ऐसा साहूकार कोई होगा? आप सभी हो? या कोई कम हो, कोई ज्यादा हो? सभी भरपूर हो? सदैव ये नशा रहे कि हर कदम में पद्मों की कमाई करने वाली आत्मा हूँ। लौकिक दुनिया में कहते हैं कि इतना कमा कर इकठ्ठा करें जो वंश के वंश खाते रहें। तो आपकी कितनी जनरेशन (पीढ़ियां) खाती रहेंगी? एक जन्म में अनेक जन्मों की कमाई जमा कर ली है और अनेक जन्म आराम से खाते रहेंगे। सतयुग में अमृतवेले उठकर योग लगायेंगे? योग की सिद्धि प्राप्त करेंगे। जैसे-पढ़ाई तब तक पढ़ी जाती है जब तक पास नहीं हो जाते। तो अनेक जन्मों जितना जमा किया है? कभी भी विनाश हो जाये तो आपका जमा रहेगा ना। या कहेंगे-थोड़ा समय मिले तो और कर लें? अभी और टाइम चाहिए? एवररेडी हो? आप यहाँ आये हो और यहीं विनाश शुरू हो जाए तो सेन्टर या सेन्टर का सामान याद आयेगा? कुछ याद नहीं आयेगा। इतने बेफिक्र बादशाह बने हो ना! जब देह भी अपनी नहीं तो और क्या अपना है! तन, मन, धन-सब दे दिया ना! जब संकल्प किया कि सब-कुछ तेरा, तो एवररेडी हो गये ना। सभी ने दृढ़ संकल्प कर लिया है कि मैं बाप की और बाप मेरा। संकल्प किया या दृढ़ संकल्प किया? कोई फिक्र नहीं है। कोई ऐसी खबर आ जाये तो फिक्र होगा? फ्लैट याद नहीं आयेगा? अच्छा है, पक्के हैं। जब ब्राह्मण बनना ही है तो पक्का बनना है, कच्चा बनने से क्या फायदा! जीते-जी मर गये कि थोड़ा-थोड़ा श्वांस चलता है? कहाँ श्वांस छिप तो नहीं गया है?

देखो, बाप का बच्चों से प्यार है। तो प्यार की निशानी क्या होती है? प्यार की निशानी है-जिससे प्यार होता है उस पर सब न्यौछावर कर देते हैं। तो बाप ने सब वर्सा आपको दे दिया ना! कुछ अपने लिए रखा है? और देखो, ऐसा कोई प्यार नहीं कर सकता जो रोज इतना प्यार का पत्र लिखे। रोज याद-प्यार मिलता है ना। तो बच्चों का प्यार है तब बाप प्यार का रेसपान्ड देते हैं। आपका भी इतना ही प्यार है ना। कि बाप से भी ज्यादा प्यार है? प्यार की और निशानी है कि-जिससे प्यार होगा उससे कभी अलग नहीं होंगे। तो बाप बच्चों को कभी अलग नहीं करता, सदा साथ है और सदा साथ रहेंगे। और कोई है ही नहीं जिसका साथ पकड़ो। बाप समान बनने का पुरूषार्थ फास्ट गति से कर रहे हो ना। समीप आने वाले हो ना। कौनसी माला में आने वाले हो? (108) 16108 में आने वाला कोई नहीं है? तो 108 की माला डबल विदेशियों की बननी है? अच्छा है, लक्ष्य सदा श्रेष्ठ रखना ही यथार्थ पुरूषार्थ है।

मन्सा-सेवा और वाचा-सेवा-दोनों करते हो या एक करते हो? डबल सेवा करते हो? सहज कौनसी लगती है? (कुछ ने मन्सा सेवा में और कुछ ने वाचा सेवा में हाथ उठाया, कुछ ने दोनों में ही हाथ उठाया) दोनों ही अभ्यास जरूरी हैं। क्योंकि जैसा समय वैसी सेवा कर सकेंगे। तो सभी जगह सेवा अच्छी चल रही है। विदेश में सतयुग के आदि की जो संख्या है उनमें से कितने तैयार किये हैं? एक लाख तैयार हुए हैं? इन्डिया 8 लाख करे तो फारेन एक लाख तो करे। कब करेंगे? कितना टाइम चाहिए? अभी सभी को समाचार गया है ना! एक मास में एक तो कर सकते हो ना। हो सकता है? तो 12 मास में कितने हो जायेंगे? समय आप मालिकों का इन्तज़ार कर रहा है। कम से कम 9 लाख तो तैयार चाहिए ना। मन्सा और वाचा-डबल सेवा से जल्दी से जल्दी सेवा को बढ़ाओ। सेवा का उमंग अच्छा रहता है। लेकिन सदैव आगे बढ़ते रहना है। इसलिए सेवा का उमंग है और आगे उमंग को बढ़ाओ। बापदादा बच्चों के पुरूषार्थ की लगन और सेवा की लगन-दोनों को देख हर्षित होते हैं। इसलिए बहुत फास्ट गति से तैयार करो।

सभी उड़ती कला वाली आत्माए हो ना। डबल फॉरेनर्स मजबूत हैं? घबराने वाले तो नहीं हो ना! बापदादा सदैव कहते हैं कि डबल फॉरेनर्स अभी एक शब्द सदा के लिए समाप्त करो। कौनसा शब्द? (कभी-कभी) तो फीनिश (समाप्त) किया? कि अभी भी ‘सम-टाइम’(Sometime; कभी-कभी) है! जब बाप का प्यार सदा है तो बच्चों का भी प्यार सदा है। या ‘सम-टाइम’ है? तो ‘सम-टाइम’ शब्द खत्म हुआ? क्योंकि अब से सदा खुश रहने का, सदा शक्तिशाली रहने का अभ्यास करेंगे तो बहुत समय का पुरूषार्थ अन्त में काम में आयेगा। ऐसे कभी नहीं सोचना कि आगे चलकर हो जायेंगे। सब सन्तुष्ट हो? दृष्टि मिली और वरदान मिला-’’सम-टाइम फीनिश’’। ‘सदा’ शब्द को सदा याद रखना।

इस समय सभी मधुबन निवासी हो। मधुबन निवासी बनना अच्छा लगता है ना। ओरिजिनल एड्रेस (पता) मधुबन है ना। घर है मधु-बन और गये हैं सेवा-स्थान पर। सारे विश्व की सेवा होनी है, इसलिए अलग-अलग स्थानों पर सेवा करने के लिए गये हो। लेकिन ओरिजिनल मधुबन निवासी हो और आगे भी भारत पर ही राज्य करने वाले हो। भारत ही सबसे महान और सबसे सुन्दर बनेगा।

जो पहली बार आये हैं उन्हों को वरदान है कि सदा नम्बर पहला लेना है। नम्बरवन बनने के लिए जो हर समय विन करता है वह वन होता है। फास्ट गति से उड़ते रहना। ताकत है ना। पंख मजबूत हैं? किसके कमजोर तो नहीं हैं? ज्ञान और योग-ये दोनों पंख मजबूत होंगे तो उड़ते रहेंगे। ज्ञान अर्थात् हर कदम श्रीमत पर चलने की समझ। याद अर्थात् सदा बाप के साथ का अनुभव करना। तो दोनों ही पंख मजबूत हैं ना। अगर किसी भी प्रकार की कमजोरी है तो कमजोरी सहज को मुश्किल कर देती है और शक्ति-शाली हैं तो मुश्किल सहज हो जायेगा, असम्भव भी सम्भव हो जायेगा। इतने पावरफुल हो ना।

दादियों से मुलाकात

वर्तमान समय कौनसा बैलेन्स चल रहा है? एक तरफ धमाल, दूसरे तरफ कमाल। कुछ भी हो लेकिन कमाल ही हो रही है ना। हर क्षेत्र में आप लोग तो आगे ही बढ़ रहे हो ना। तो दुनिया में है धमाल और आपके पास समाचारों में कमाल है। जितनी धमाल होगी उतनी आपकी कमाल होगी और प्रत्यक्ष होते जायेंगे। दुनिया वाले डरते हैं और आप और ही निर्भय होते हैं। निर्भय हो या धमाल से डरते हो? जितनी धमाल देखते हो उतना यही सोचते हैं कि आज धमाल है और कल हमारी कमाल हुई ही पड़ी है! बैलेन्स चल रहा है ना। देखो, डिग्री भी मिल रही है, (दादी जी को उदयपुर युनिवार्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री मिलने वाली है) मकान भी मिल रहे हैं। जो असम्भव बातें हैं वो सम्भव हो रही हैं। तो यह कमाल है ना। निमन्त्रण भी मिल रहे हैं। कुछ समय पहले यह नहीं था, अभी बढ़ रहा है। तो कमाल बढ़ रही है ना। ये बाप ब्रह्मा द्वारा फास्ट गति की सेवा का सबूत दिखा रहे हैं। जो मुश्किल बातें होती हैं वे समय अनुसार ऐसी सहज होती जायेंगी जैसे हुई ही पड़ी हों! इसलिए आपको भय नहीं है। सोचते हो कि ये कब धमाल तो होनी ही है और हमारी कमाल भी होनी ही है। कोई डरते हैं-कर्फ्यू लगा, ये सिविल वार हो रही है, क्या होगा! डरते हो? ड्रामा अनुसार यह सभी और पुरूषार्थ को मजबूत करते हैं। अच्छा! और सब ठीक है? (दादी जी को थोड़ी खांसी है) तबियत का हिसाब चुक्तू कर रही हो। एक तो आयु के हिसाब से भी हिसाब चुक्तू होता है और दूसरा रहस्य यह है कि महारथियों को सब हिसाब यहीं चुक्तू करना है, जरा भी रहना नहीं है। बापदादा को तो खेल लगता है। जब ब्रह्मा बाप ने क्रॉस (Cross; पार) किया तो आप सबको भी क्रॉस तो करना ही है। या तो है योगबल से सहज क्रॉस करना, या तो है धर्मराज के क्रॉस (शूली) पर चढ़ना। तो ये क्रॉस कर रहे हैं, इसलिए क्रॉस पर नहीं चढ़ेंगे। अच्छा!

क्रिसमस प्रति बापदादा का सन्देश

जिन्होंने भी क्रिसमस के, न्यु-इयर के कार्ड भेजे हैं-सभी बच्चों को बापदादा का पद्म गुणा याद, प्यार स्वीकार हो। क्रिसमस का अर्थ है बड़ा दिन। वो बड़ा दिन मनाते हैं और आप सब बड़ी दिल वाले हो। तो बड़ी दिल रखने वाले जो होते हैं वो सदा स्वयं भी भरपूर रहते हैं और दूसरों को भी भरपूर रखते हैं। तो बड़ी दिल से बड़ा दिन मनाने वालों को मुबारक। ‘क्रिसमस-डे’ की गिफ्ट तो बापदादा ने सभी को वरदान दिये। यह सबसे बड़ी गिफ्ट है। ब्लेसिंग याद है ना। अच्छा!